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Showing posts from July, 2018

माॅ

माॅ माॅं है वो हर घड़ी, हर वक्त, हर पल मानो हममें ही जीतीं हैं वो उनकी हॅंसी, अक्सर हमें धोखा दे देती है, और हम, देख नही पाते, उनकी हॅंसी के पीछे का दर्द पर हमारी मुस्कुराहट के पीछे, छुपे हमारे हर दर्द को समझ जाती हैं वो और हमारे हर दर्द को देखते है हम उनकी आॅंखो मे, जब अॅंासू बनकर झलकते है वो, उनकी आॅंखो से उनकी नजरो में उनकी नहीं हमारे सपने होते हैं, जागती हैें वो हमारे लिए, जब हम चैन से सोते हैं लापरवाह भले हो जाए हम, अपनी जरुरतो के लिए, पर हम हमेशा सतर्क रहती हैं वो, हमारे लिए जब कभी भटकते हैं हम अपने रास्तो से तो, सही मार्ग दिखती हैं वो अपनी आशिष, अपनी मन्नतो से हमको सफल बनाती हैं वो, माॅं हैं वो अपने हिस्से का भी प्यार हम पर लूटा देती हैं वो।

रात

रात शाम के चैखट पर ओढ़ के काली चादर आती रात धीरे से लेकर थैले में स्वप्न अनगिन फिर आॅंखो के काजल को चारो ओर बिखेर देती है ेखट्टे मिठे सपनो को सबके अपने हिस्सेें भेंज देती है कुछ समय के लिए भटकाकर सबको               हर सवेरे वह खुद भटक जाती है फिर दस्तक देती रात जब जब शाम आती है।

कभी

कभी भरी महफिल में भी कुछ लोग तन्हा रह जाते है, यादों के कारवां में भी अकसर वादे टूट जाते है, अपने होते हैं अपनेपन से प्यारे पर कहीं किसी मोड़ पर छोड़ देते है अपने और पराये काम आते है, दुःख की रात खा जाती है नींद और सुख की रात वैसे भी सो नहीं पाते हैं, कभी सीधी राह भी ठोकरें बन जाती हैं और राहें ही कभी डगमगाते कदमो के सहारे बन जाते हैं, बड़ी से बड़ी बातो को भी कभी हॅंस कर हवा कर देते हैं कभी छोटी-छोटी बात पर भी आॅंसु छलक आते है, कभी आती हॅंसी को रोक नही पाते है, कभी चाह के भी रो नहीं पातें हैं, कभी लोग जान के भी अनजान बने रहते हैं कभी बिन बताए हर बात समझ जाते हैं।

बचपन

बचपन एक कागज पर चित्र बनाया था अपने बचपन में अपने ख्यालो को, रंगा था अपने पसंद के रंगो से टेढ़े-मेढ़े लकीरो को खिंचकर हल्के-गाढ़े रंगो से सजाया था उस चित्र ने खुशिया भर दी थी मुझमे, वाह, वाह, की तारीफो से भी ज्यादा प्यारा था वो चित्र, मेरे लिए आज फिर अपने खुशियो का इजहार करने के लिए हम बनाना चाहते हैं एक चित्र एक कागज पर अपने ख्यालो को, अपने पसंद के रंगो से सजाकर उभारना चाहते हैं, आज भी देती है खुशी वो याद, जब एक कागज पर एक चित्र बनाया था अपने बचपन में।
यायावर मन वह ख्वाब क्या है जो मुझको ही मेरे अन्तर्मन में डुबोती है, किस सोच डुबा रहता हुॅं मुझे खुद की खबर भी न होती है क्यों लगता है मुझको मेरे संग साए की तरह कोई चलता है देखता हुॅं तो केवल परछाई साथ होती है क्या कोई राज है मुझमें जिसे जानने से मैं ही कतरा जाता हुॅं क्या जानने के लिए मैं ख्वाबो में भटक जाता हुॅं, वह चीज क्या है, जिसे पूरा करने की मेरी अभिलाषा है, क्या है वह जिसके बिन अॅंधुरी मेरी हर आशा है।
शब्दशः कविताएं उन अनुभूतियों का साक्षात्कार हैं जो कल्पनाओं से शब्द लेकर यथार्थ-क्षिति पर विचरती हैं। अहसास जब राग-रागिनियां बन जाती हैं तब जिंदगी भी एक कविता बन जाती है।