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कभी

कभी
भरी महफिल में भी कुछ लोग
तन्हा रह जाते है,
यादों के कारवां में भी अकसर
वादे टूट जाते है,

अपने होते हैं अपनेपन से प्यारे
पर कहीं किसी मोड़ पर
छोड़ देते है अपने
और पराये काम आते है,

दुःख की रात खा जाती है नींद
और सुख की रात वैसे भी सो नहीं पाते हैं,
कभी सीधी राह भी ठोकरें बन जाती हैं
और राहें ही कभी
डगमगाते कदमो के सहारे बन जाते हैं,

बड़ी से बड़ी बातो को भी
कभी हॅंस कर हवा कर देते हैं
कभी छोटी-छोटी बात पर भी आॅंसु छलक आते है,
कभी आती हॅंसी को रोक नही पाते है,
कभी चाह के भी रो नहीं पातें हैं,
कभी लोग जान के भी अनजान बने रहते हैं
कभी बिन बताए हर बात समझ जाते हैं।

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माॅ

माॅ माॅं है वो हर घड़ी, हर वक्त, हर पल मानो हममें ही जीतीं हैं वो उनकी हॅंसी, अक्सर हमें धोखा दे देती है, और हम, देख नही पाते, उनकी हॅंसी के पीछे का दर्द पर हमारी मुस्कुराहट के पीछे, छुपे हमारे हर दर्द को समझ जाती हैं वो और हमारे हर दर्द को देखते है हम उनकी आॅंखो मे, जब अॅंासू बनकर झलकते है वो, उनकी आॅंखो से उनकी नजरो में उनकी नहीं हमारे सपने होते हैं, जागती हैें वो हमारे लिए, जब हम चैन से सोते हैं लापरवाह भले हो जाए हम, अपनी जरुरतो के लिए, पर हम हमेशा सतर्क रहती हैं वो, हमारे लिए जब कभी भटकते हैं हम अपने रास्तो से तो, सही मार्ग दिखती हैं वो अपनी आशिष, अपनी मन्नतो से हमको सफल बनाती हैं वो, माॅं हैं वो अपने हिस्से का भी प्यार हम पर लूटा देती हैं वो।

सखी

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शब्दशः कविताएं उन अनुभूतियों का साक्षात्कार हैं जो कल्पनाओं से शब्द लेकर यथार्थ-क्षिति पर विचरती हैं। अहसास जब राग-रागिनियां बन जाती हैं तब जिंदगी भी एक कविता बन जाती है।