कभी
भरी महफिल में भी कुछ लोगतन्हा रह जाते है,
यादों के कारवां में भी अकसर
वादे टूट जाते है,
अपने होते हैं अपनेपन से प्यारे
पर कहीं किसी मोड़ पर
छोड़ देते है अपने
और पराये काम आते है,
दुःख की रात खा जाती है नींद
और सुख की रात वैसे भी सो नहीं पाते हैं,
कभी सीधी राह भी ठोकरें बन जाती हैं
और राहें ही कभी
डगमगाते कदमो के सहारे बन जाते हैं,
बड़ी से बड़ी बातो को भी
कभी हॅंस कर हवा कर देते हैं
कभी छोटी-छोटी बात पर भी आॅंसु छलक आते है,
कभी आती हॅंसी को रोक नही पाते है,
कभी चाह के भी रो नहीं पातें हैं,
कभी लोग जान के भी अनजान बने रहते हैं
कभी बिन बताए हर बात समझ जाते हैं।
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