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सखी

गलियों में कूदती बागों में झूलती कागज की कश्ती पानी की मछली जुगनू को पकड़ना बालो का उलझना ये मेरी वो तुम्हारी नहीं-नहीं अब मेरी बारी  छुपन-छुपाई का खेल झगड़ा-लड़ाई और मेल कुछ तीखी कुछ मीठी आज भी सॅजोकर रखी है सखी तुम्हारी स्मृति। -सुप्रिया वर्मा

दिवाली (पर्व-गीत)

  आलोकित हो मन का हर कोना संपूर्ण संसार प्रकाशित हो  देदीप्यमान हो ब्रह्मांड  हर हृदय आशान्वित हो   सत्य-स्नेह की रोशनी में  हर दैनंदिन का धवल प्रात: हो  संपूर्ण तिमिर हो व्यतीत  शुभ ऊर्जा संचारित हो  न हो कोई नकारात्मक भावना  सरल सकारात्मक जीवन हो  जगमग जले जग में दीपक  शुभ-लाभ दिवाली हो। -सुप्रिया वर्मा 

रचनाकार के बारे में

सुप्रिया वर्मा शिक्षा - स्नातक (अध्ययनरत द्वितीय वर्ष) पता - अमरुतिया-25, न.पा.प.-महराजगंज, पो. व जनपद-महराजगंज (उत्तर प्रदेश) प्रमुख साहित्यिक विधायें - कविता, कहानी, निबंध प्रमुख कविताएं - मॉ, बचपन, रात, कभी, यायावर मन प्रमुख कहानियां - चंचल, महक मिट्टी की आत्म-कथ्य - कविताएं उन अनुभूतियों का साक्षात्कार हैं जो कल्पनाओं से शब्द लेकर यथार्थ-क्षिति पर विचरती हैं। अहसास जब राग-रागिनियां बन जाती हैं तब जिंदगी भी एक कविता बन जाती है।

दो शब्द

कविताएं उन अनुभूतियों का साक्षात्कार हैं जो कल्पनाओं से शब्द लेकर यथार्थ-क्षिति पर विचरती हैं। अहसास जब राग-रागिनियां बन जाती हैं तब जिंदगी भी एक कविता बन जाती है।

नदी के द्विप

 

शब्द

शब्द किया किसने निर्मित इसे वर्णो को जोड़कर किस सक्षम की सार्थकता ने किया सार्थक बोलकर, शब्दो से संधि हुई शब्द में विच्छेद हुआ किन्ही शब्दो में मेल हुई किन्ही शब्दो से मतभेद हुआ, शब्द कब तीर से तेज चुभी क्ब तीखी मधुर मुस्कान बनी शब्द कभी औषधि हुई कभी किसी की प्राण बनी, किसने इन शब्दो को भावो में पिरोया है शब्दो के जाल में बुद्धिजीवी खोया है, शब्द कब माध्यम बना व्यक्ति से व्यक्ति के पहचान का शब्द कब आधार बना जीवन के विकास का, शब्द कभी कायर बना  कभी वीरो का ललकार भी शब्दो से कभी युद्ध हुआ कभी प्रेम प्रलाप भी, शब्दो से रचा-बसा साहित्य से समाज तक किसने रचा शब्द को वर्ण से वाक्य तक।